लॉकडाउन में अमानवीयता ने लांघी अपनी चरम सीमा!
"यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः" अर्थात जहां स्त्रियों की पूजा(सम्मान) होता है ,वहीं देवता निवास करते हैं। इस बात को हमने तमाम बार सुना है,पर क्या हम इसे अपने जीवन में उतार पाए हैं? देवी का नमन और देवी जैसी का दमन:- हमनें देवियों की पूजा, उनका सम्मान तो कर लिया पर जिन औरतों को देवी मानने का ढोंग हम करते हैं, उनका अपमान करने में हमने कोई कसर नहीं छोड़ी। हमारा समाज तमाम परंपराओं और संस्कृतियों से बना एक खूबसूरत इंद्रधनुष है। इसके कई रंग उजले हैं तो कुछ रंग इतने मेले हैं जिन्होंने कई लोगों की जिंदगियों को झकझोर कर रख दिया है। ऐसा ही एक रंग है- औरतों के शोषण का, उनपर सदियों से होते आ रहे अत्याचार का। चाहें बात सीता, उर्मिला, कुंती या सत्यवती जैसी महिलाओं की हो,जिनकी दुर्दशा और पीड़ा की कई कहानियां हमने सुनी हैं या बनारस और वृंदावन जैसे तीर्थ स्थलों पर मौजूद विधवाओं की जिनका हर पल शोषण हो रहा है या फिर आजादी के समय मौजूद उन हजारों औरतों की जो अपहरण और बलात्कार का शिकार हुईं। हमारे इतिहास में तमाम ऐसे उदाहरण हैं जो यह बयां करते हैं कि जब भी कभी कोई प्राकृ