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लॉकडाउन में अमानवीयता ने लांघी अपनी चरम सीमा!

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"यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः" अर्थात जहां स्त्रियों की पूजा(सम्मान) होता है ,वहीं देवता निवास करते हैं। इस बात को हमने तमाम बार सुना है,पर क्या हम इसे अपने जीवन में उतार पाए हैं? देवी का नमन और देवी जैसी का दमन:- हमनें देवियों की पूजा, उनका सम्मान तो कर लिया पर जिन औरतों को देवी मानने का ढोंग हम करते हैं, उनका अपमान करने में हमने कोई कसर नहीं छोड़ी। हमारा समाज तमाम परंपराओं और संस्कृतियों से बना एक खूबसूरत इंद्रधनुष है। इसके कई रंग उजले हैं तो कुछ रंग इतने मेले हैं जिन्होंने कई लोगों की जिंदगियों को झकझोर कर रख दिया है। ऐसा ही एक रंग है- औरतों के शोषण का, उनपर सदियों से होते आ रहे अत्याचार का। चाहें बात सीता, उर्मिला, कुंती या सत्यवती जैसी महिलाओं की हो,जिनकी दुर्दशा और पीड़ा की कई कहानियां हमने सुनी हैं या बनारस और वृंदावन जैसे तीर्थ स्थलों पर मौजूद विधवाओं की जिनका हर पल शोषण हो रहा है या फिर आजादी के समय मौजूद उन हजारों औरतों की जो अपहरण और बलात्कार का शिकार हुईं। हमारे इतिहास में  तमाम ऐसे उदाहरण हैं जो यह बयां करते हैं कि जब भी कभी कोई प्राकृ

प्रेरणा,हिम्मत और उम्मीद की मिसाल है ‘शीरोज हैंगआउट|’

प्रेरणा,हिम्मत और उम्मीद की मिसाल है ‘शीरोज हैंगआउट|’ एक ऐसी जगह जो हमें मानवता का एहसास दिलाती है | देश भर में तेज़ाब फकेनें के अपराध के खिलाफ़ समुचित कानून ना होने पर, जब एसिड अटैक सरवाइवर लक्ष्मी ने आवाज़ उठाई तब शुरूआत हुई “स्टॉप एसिड अटैक” अभियान की | यह अभियान मार्च 2013 में शुरू हुआ उसके बाद मई 2013 में  ‘छाँव फाउंडेशन’ अस्तित्व में आया,जो एसिड अटैक सर्वाइवर्स के लिए काम कर रहा था | यूपी का आगरा पहली ऐसी जगह है जहां शीरोज हैंगआउट की शुरुआत हुई| शीरोज हैंगआउट के संस्थापक ‘आलोक दीक्षित’ ने कहा, “यह पहल स्टॉप एसिड अटैक अभियान का हिस्सा है|” जहां एक ओर  महिलाओं के साथ होने वाले अपराधों के लिए उन्हें ही जिम्मेदार ठहराया जाता है वहां एसिड अटैक सर्वाइवर्स को उस सदमे से उभर कर नए सिरे से जिंदगी शुरु करने और अपने पैरों पर खड़े होने की हिम्मत देता है यह शीरोज हैंगआउट |

बचपन

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          “सपनों का वो आंगन कहां , दर्पण बता बचपन कहां ?” “बचपन” यह शब्द सुनते ही मानो जैसे वक्त का पहिया Rewind mode में चला जाता है और हमें हमारा बीता हुआ वक़्त याद सा  आ जाता है | सभी के जीवन का सबसे खूबसूरत और यादगार हिस्सा होता है बचपन | न कोई भाग दौड़ न किसी चीज की फिक्र | एक ऐसा दौर होता है बचपन, जहां Candy Floss को बुढ़िया   के बाल कहने पर मज़ाक नहीं बनाया जाता, जब क्लास से बाहर निकाला जाना सजा नहीं मजा होता था, जहां बस ‘मुच्ची’ से बड़े-बड़े झगड़े सुलझाए जाते थे, जहाँ Hide and seek या I-spy नहीं आइस पाईस  होता था | बारिश में कागज़ की नाव बनाना ही जीवन भर की खुशी दे जाता था | बारिश तो आज भी वही है लेकिन शायद भूल गए सब नाव बनाना कागज़ की | स्कूल खत्म होते ही माँ से लिए गए दो रुपए की कीमत भी लाखों से कहीं ज़्यादा होती थी | तब तो शीकन्जी और काला खट्टा की खटास भी मीठी सी लगती थी | "काले गोरे का भेद नहीं, हर दिल से हमारा नाता है" सच ही है,तब ना ही काले गोरे में क

अंदाज़-ए-नखलऊ

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                 अंदाज़-ए-नखलऊ हमारा अपना लखनऊ या यूं कहें कि Luck - now . लक्ष्मणपुरी से लक्नौउ और फिर लक्नौ से लखनऊ में बदलता यह शहर | हजरतगंज दिल में लिए और चौक से अपनी पहचान बनाता यह शहर | सच ही कहते हैं लोग “जो लखनऊ में आता है वह यहीं का होकर रह जाता है” यह शहर बहुत ही खूबसूरती से किसी को भी अपना बना लेता है | “कुछ अलग सी बात है इस शहर में, बहुत ही अपने से ज़ज़्बात हैं इस शहर में|” सुबह का लखनऊ- हर जगह की सुबह एक ही जैसी होती है, फिर क्या अलग है लखनऊ की सुबह में? शर्मा की चाय समोसे से शुरू होती है यह सुबह,रेवड़ी की मिठास में कहीं घुल सी जाती है| सूरज उगते ही शर्मा की दुकान के पास लगी भीड़ ही गवाह है लखनऊ की गुड वाली मोर्निंग्स की | तहजीब-ए-लखनऊ- “अदब, नज़ा क त और तहज़ीब होती है हर पहर में, मुस्कुराइए आप हैं लखनऊ शहर में |” लखनऊ की तहज़ीब और ‘पहले आप’ वाला कल्चर पूरे देश में एक अलग सी पहचान दिलाता है| लखनऊ की बात हो और शायरों का ज़िक्र ना हो यह तो हो ही नहीं सकता | यहां रहने वाले हर शख्स में एक शायर बसता है | शायरों ने लखनऊ की खू

मेरे हीरो - पापा

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“चंदा ने पूछा तारों से, तारों ने पूछा हजारों से, सबसे प्यारा कौन है, पापा मेरे पापा |” मां की ममता की तो हर कोई बात करता है, लेकिन पिता द्वारा दी गयी कुर्बानियों का कम ही लोग जिक्र करते हैं | अगर मां जीवन की सच्चाई है, तो पिता इस जीवन का आधार| “मैं मानती हूं कि मां के बिना जीवन अधूरा है, पर पिता के बिना भी कौन सा पूरा है” पिता वह शख्स है जो हर पल हमें संभालने के लिए हमारे साथ खड़ा रहता है | कभी मार्गदर्शक बनकर तो कभी एक दोस्त बनकर | बचपन में साइकिल से गिरने से बचाना हो या बड़े होकर सही राह दिखाना एक पिता के सिवा और कौन ही कर सकता है | “शरारतों पर वह हंसता है, बस ऊपर से सख़्ती दिखाता है, अपने हीरो को देखकर कमजोर ना पड़ जाए बेटियां, इसीलिए बाप अपने आंसू छुपाता है|” एक बेटी की ताकत और उसका ग़ुरूर होते हैं पिता, सबके दिलों की धड़कन और सारे घर की शान होते हैं पिता| पूरे दिन की थकान के बाद भी कभी न शिकायत करने वाला,अपने बच्चों की हर एक इच्छा को हंसकर पूरी करने वाला,अपने परिवार के लिए सब कुछ क़ुर्बान करने वाला वह शख्स ह

एक ‘छोटी’ सी कहनी

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                     मैं  विजय.. नशे में मैं अपने दोस्त अमित के साथ घर आता हूं | घर पर मेरी छोटी बहन मेरा इंतजार कर रही होती है | (knocking door) छोटी दरवाजा खोल.. दरवाजा खोल छोटी.. (Choti opens the door) सो गई थी क्या छोटी? अच्छा ठीक है जा और सो जा.. सुन! तेरा दुपट्टा कहां है? तुझसे हजार बार बोला है ना दुपट्टा डाल कर रहा कर.. चल जा अब.. आ बैठ अमित.. अरे वो एक quarter पड़ा होगा ना तेरे पास, खोल उसे.. आज तेरी सरकारी नौकरी लगी है, मैं तो खूब पियूंगा.. ला इधर अपना ग्लास  भी दे.. क्या! तू और नहीं पिएगा..? चल ठीक है, मैं ही पी लूंगा फिर.. (फिर मैं नशे में बेहोश हो जाता हूं,थोड़ी देर बाद मुझे छोटी के चिल्लाने की आवाज़ आती है और मैं नशे में उठ कर छोटी के कमरे में जाता हूं) क्या हुआ छोटी रो क्यों रही है?? साले अमित यह तू क्या कर रहा है मेरी छोटी बहन के साथ?? छोटी-छोटी तू... तू ठीक है ना छोटी?? चल तू मेरे साथ पुलिस स्टेशन.. इसने कुछ किया तो नहीं छोटी.. कुछ बोल ना छोटी.. (इतने में पीछे से कुछ मारकर अमित मुझे बेहोश कर देता है) (होश में आने

एक लड़की की कहानी

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“जिंदगी का सफर है यह कैसा सफर, कोई समझा नहीं कोई जाना नहीं”   इस खूबसूरत गाने की याद के साथ मैं आपको बताना चाहती हूं एक आम सी लड़की की जिंदगी के सफर के बारे में | एक छोटी सी और एक मोटी सी लड़की की कहानी | वैसे कहने को तो रक्षा उसका नाम है, लेकिन वह मोटी,भैंस और हाथी के नाम से बदनाम है | “मोटी कहकर हंस रहा तो हंसता रहे जहाँ,वह लोगों की बात का बुरा मानती नहीं” कक्षा में शांत सी रहने वाली वह लड़की बाहर गदर है मचाती, अपने दोस्तों के साथ फिल्मों के गाने है वह गाती | सीधी सादी सी सोच रखने वाली यह  लड़की,जिसने अपनी आंखों में न जाने कितने सपने सँजो रखे थे | “आसमान की बुलंदियों को छूने की चाहत है उसकी, पर सीढ़ियां उन्हें मुबारक जिन्हें सिर्फ छत तक जाना है, अपने आसमान का रास्ता तो उसे खुद ही बनाना है |” “अंखियों के झरोखों से उसने देखा जो सामने, बड़ी दूर नजर आए.. बड़ी दूर नजर आए” कुछ ऐसी ही हालत थी उसके सपनों की | वह चली तो थी अपनी मंज़िल को पाने के लिए | कभी डॉक्टर बनने की चाहत तो कभी बैंकर बनने की ख़्वाहिश लिए | क्या बताऊ